दर्द आसानी से कब पहलू बदल कर…

दर्द आसानी से कब पहलू बदल कर निकला
आँख का तिनका बहुत आँख मसल कर निकला,

तेरे मेहमान के स्वागत का कोई फूल थे हम
जो भी निकला हमें पैरों से कुचल कर निकला,

शहर की आँखें बदलना तो मेरे बस में न था
ये किया मैं ने कि मैं भेस बदल कर निकला,

मेरे रस्ते के मसाइल थे नोकिले इतने
मेरे दुश्मन भी मेरे पैरों से चल कर निकला,

डगमगाने ने दिए पाँव रवादारी ने
मैं शराबी था मगर रोज़ सँभल कर निकला..!!

~हसीब सोज़

Leave a Reply

Eid Special Dresses for women