चराग़ों से हवाएँ लड़ रही हैं

चराग़ों से हवाएँ लड़ रही हैं
कि ख़ुद बच्चों से माएँ लड़ रही हैं,

नशेमन तो उजाड़े थे हवा ने
शजर से फ़ाख़ताएँ लड़ रही हैं,

नई तहज़ीब की बे रह रवी पर
पुरानी दाश्ताएँ लड़ रही हैं,

बरहना हो गए किरदार सारे
कि आपस में कथाएँ लड़ रही हैं,

झगड़ कर हो चुके हैं दोस्त बच्चे
अभी तक मामताएँ लड़ रही हैं..!!

~सलीम अंसारी

उसे हम याद आते हैं फक़त फ़ुर्सत के लम्हों में

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