ये क़ुदरत भी अब तबाही की हुई शौक़ीन

ye-qudrat-bhi-ab

ये क़ुदरत भी अब तबाही की हुई शौक़ीन लगती है ऐ दौर ए ज़दीद साज़िश तेरी बहुत संगीन

क्यूँ खौफ़ इस क़दर है तुम्हे हादसात का ?

क्यूँ खौफ़ इस क़दर

क्यूँ खौफ़ इस क़दर है तुम्हे हादसात का ? एक दिन ख़ुदा दिखाएगा रास्ता निज़ात का, ये तजरुबा

इंसान में हैवान यहाँ भी है वहाँ भी

इंसान में हैवान यहाँ

इंसान में हैवान यहाँ भी है वहाँ भी अल्लाह निगहबान यहाँ भी है वहाँ भी, ख़ूँख़्वार दरिंदों के

ज़नाब शेख़ की हर्ज़ा सराई ज़ारी है

ज़नाब शेख़ की हर्ज़ा

ज़नाब शेख़ की हर्ज़ा सराई ज़ारी है इधर से ज़ुल्म उधर से दुहाई ज़ारी है, बिछड़ गया हूँ

इस बहते हुए लहू में मुझे तो

is bahte hue lahoo me

इस बहते हुए लहू में मुझे तो बस इन्सान नज़र आ रहा है लानत हो तुम पे तुम्हे

ऐसा अपनापन भी क्या जो अज़नबी

ऐसा अपनापन भी क्या

ऐसा अपनापन भी क्या जो अज़नबी महसूस हो साथ रह कर भी गर मुझे तेरी कमी महसूस हो,

ये न पूछो कि कैसा ये हिन्दुस्तान होना चाहिए

ye naa pucho kaisa hindustan hona chahiye

ये न पूछो कि कैसा ये हिन्दुस्तान होना चाहिए खत्म पहले मज़हब का घमासान होना चाहिए, इन्सान को

ख़ुद हो गाफ़िल तो अक्सर ये भी भूल जाते है

khud ho gafil to aksar

ख़ुद हो गाफ़िल तो अक्सर ये भी भूल जाते है कि ख़ुदा सब देख रहा है वो अंजान

आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे

आँख पर पट्टी रहे

आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे अपने शाह ए वक़्त का यूँ मर्तबा आला रहे

ये अमीरों से हमारी फ़ैसलाकुन जंग थी

ये अमीरों से हमारी

ये अमीरों से हमारी फ़ैसलाकुन जंग थी फिर कहाँ से बीच में मस्ज़िद ओ मंदिर आ गए ?