ज़नाब शेख़ की हर्ज़ा सराई ज़ारी है
इधर से ज़ुल्म उधर से दुहाई ज़ारी है,
बिछड़ गया हूँ मगर याद करता रहता हूँ
क़िताब छोड़ चुका हूँ पढ़ाई ज़ारी है,
तेरे अलावा कहीं और भी मुलव्वस है
तेरी वफ़ा से उनकी बेवफ़ाई ज़ारी है,
वो क्यूँ कहेंगे कि दोनों में अम्न हो जाए
हमारी जंग से जिनकी कमाई ज़ारी है,
अज़ीब ख़ब्त ए मसीहाई है कि हैरत है
मरीज़ मर भी चुका है दवाई ज़ारी है..!!