किसी दिन तो तू भी मुहब्बत हक़ीक़ी कर के देख
किसी दिन तो तू भी मुहब्बत हक़ीक़ी कर के देख कैसे जीते है तेरे बगैर तू भी तो …
किसी दिन तो तू भी मुहब्बत हक़ीक़ी कर के देख कैसे जीते है तेरे बगैर तू भी तो …
ऐसे मौसम में भला कौन जुदा होता है जैसे मौसम में तू हर रोज़ खफ़ा होता है, रोज़ …
तेरे और मेरे बारे में जो मशहूर एक कहानी है वही कहानी अब ज़माने के ज़हन से मिटानी …
मैं सुबह बेचता हूँ, मैं शाम बेचता हूँ नहीं मैं महज़ अपना काम बेचता हूँ, इन बूढ़े दरख्तों …
पेड़ मुझे तब हसरत से देखा करते थे जब मैं जंगल में पानी लाया करता था, थक जाता …
शोर करूँगा और न कुछ भी बोलूँगा ख़ामोशी से अपना रोना रो लूँगा, सारी उम्र इसी ख्वाहिश में …
थक गया है मुसलसल सफ़र उदासी का और अब भी है मेरे शाने पे सर उदासी का, वो …
दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला, अब उसे लोग …
कर्ब हरे मौसम को तब तक सहना पड़ता है पतझड़ में तो पात को आख़िर झड़ना पड़ता है, …
कैसे कहे, क्या कहे इसी कशमकश में रह गए हम अल्फाज़ ढूँढ़ते रहे, वो बात अपनी कह गए, …