दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के…
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार केवो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के, वीराँ है मय-कदा ख़ुम-ओ-साग़र
General Poetry
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार केवो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के, वीराँ है मय-कदा ख़ुम-ओ-साग़र
ये मिस्रा नहीं है वज़ीफ़ा मिरा हैख़ुदा है मोहब्बत मोहब्बत ख़ुदा है, कहूँ किस तरह मैं कि वो
वो सिवा याद आए भुलाने के बा’दज़िंदगी बढ़ गई ज़हर खाने के बा’द, दिल सुलगता रहा आशियाने के
दिल मेरा मिस्र का बाज़ार भी हो सकता हैकोई धड़कन का ख़रीदार भी हो सकता है, कोई हो
नख्ल ए ममनूअ के रुख दोबारा गया, मैं तो मारा गयाअर्श से फ़र्श पर क्यूँ उतारा गया ?
उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दियाहिज्र की रात बाम पर माह-ए-तमाम रख दिया, आमद-ए-दोस्त की
उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआअब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ, ढलती न थी
वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करेमैं तुझको भूल के ज़िंदा रहूँ ख़ुदा न
दिल में न हो जुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलतीख़ैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती , कुछ लोग
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखोज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो, सिर्फ़ आँखों से