भूली हुई सदा हूँ मुझे याद कीजिए
तुम से कहीं मिला हूँ मुझे याद कीजिए,
मंज़िल नहीं हूँ ख़िज़्र नहीं राहज़न नहीं
मंज़िल का रास्ता हूँ मुझे याद कीजिए,
मेरी निगाह ए शौक़ से हर गुल है देवता
मैं इश्क़ का ख़ुदा हूँ मुझे याद कीजिए,
नग़्मों की इब्तिदा थी कभी मेरे नाम से
अश्कों की इंतिहा हूँ मुझे याद कीजिए,
गुमसुम खड़ी हैं दोनों जहाँ की हक़ीक़तें
मैं उन से कह रहा हूँ मुझे याद कीजिए,
‘साग़र’ किसी के हुस्न ए तग़ाफ़ुल शिआर की
बहकी हुई अदा हूँ मुझे याद कीजिए..!!
~साग़र सिद्दीक़ी