बेवफ़ा तुम को भुलाने में तकल्लुफ़ कैसा
आइना सच का दिखाने में तकल्लुफ़ कैसा
तीरगी घर की मिटाने में तकल्लुफ़ कैसा
दीप छोटा सा जलाने में तकल्लुफ़ कैसा
प्यार का गीत सुनाने में तकल्लुफ़ कैसा
हाँ पसंद अपनी बताने में तकल्लुफ़ कैसा
वो उदासी के समुंदर में अकेला है बहुत
हौसला देने दिलाने में तकल्लुफ़ कैसा
अपने गुलशन को मैं शादाब रखा करती हूँ
घर का कचरा भी उठाने में तकल्लुफ़ कैसा
मुझ को अक्सर वो यही बात कहा करता है
हम से ही मिलने मिलाने में तकल्लुफ़ कैसा
जो ‘शगुफ़्ता’ को ज़माना ये सताता है बहुत
आँख से अश्क बहाने में तकल्लुफ़ कैसा..!!
~शगुफ़्ता शफ़ीक़