बहुत कुछ मेहनतों से एक ज़रा…

बहुत कुछ मेहनतों से एक ज़रा इज़्ज़त कमाई है
अंधेरे झोंपड़े में रौशनी जुगनू से आई है,

तसद्दुक़ ज़िंदगी फ़ाक़ों पे उसके अहद ए हाज़िर में
कि जिसने जान दे कर आबरू अपनी बचाई है,

हमें इंकार है बातिल परस्तों की क़यादत से
हमारी ज़िंदगी की हर तमन्ना कर बलाई है,

ख़ुद अपने शहर में अपना शनासाई नहीं कोई
न जाने जुस्तुजू अपनी ये किस मंज़िल पे लाई है,

अजब दस्तूर है साहिल कि इस अहद ए तरक़्क़ी में
भलाई में बुराई और बुराई में भलाई है..!!

~अब्दुल हफ़ीज़ साहिल क़ादरी

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