बात इधर उधर तो बहुत घुमाई जा सकती है
पर सच्चाई भला कब तक छुपाई जा सकती है ?
खून से बना कर माँ बच्चे को जो पिलाती है
उस दूध की क़ीमत कैसे चुकाई जा सकती है ?
सहरा की प्यास तो समन्दर बुझा सकता है
पर समन्दर की प्यास कैसे बुझाई जा सकती है ?
नहीं हल निकलता गर तोप और बंदूक से
लड़ाई प्यार से भी तो सुलझाई जा सकती है,
खींच दी है दिलो में गर दीवार मज़हब ने
उससे कोई खिड़की भी तो बनाई जा सकती है,
बेबस पे ज़ुल्म देख कर गर कुछ कर नहीं सकते
तो शर्म से अपनी गर्दन तो झुकाई जा सकती है,
मुश्किल है लड़ना गर अकेले किसी बुराई से
उसके ख़िलाफ़ मुहिम भी तो चलाई जा सकती है,
दुनियाँ भर के हक़ीम जब बेबसी से हाथ जोड़ दे
तो दुआ की ताक़त भी तो आज़माई जा सकती है,
अपनी असलियत तो दौलत से छुपा लेगा कोई
पर औकात भला कब तक छुपाई जा सकती है ?
राह मुश्किल होती है ज़रा वक़्त लग जाता है
पर दौलत ईमानदारी से भी तो कमाई जा सकती है,
चलो मान लिया ख़ुद की नज़रों में वो बेगुनाह सही
पर उस पर कोई तोहमत भी तो लगाई जा सकती है..!!