अक्स मौजूद न साया मौजूद

अक्स मौजूद न साया मौजूद
मुझ में अब कुछ नहीं मेरा मौजूद,

निकल आता हूँ मैं अक्सर बाहर
कोई ख़ुद में रहे कितना मौजूद,

कभी दरिया से है क़तरा ग़ाएब
कभी क़तरे में है दरिया मौजूद,

मैं ज़रा भी नहीं उस में लेकिन
मुझ में वो सारा का सारा मौजूद,

जब तलक प्यास है तुझ में बाक़ी
बस तभी तक है ये दरिया मौजूद,

काश मौजूद न हो अपना कोई
जिस घड़ी होने लगूँ ला मौजूद..!!

~राजेश रेड्डी

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