अदाएँ हश्र जगाएँ वो इतना दिलकश है

अदाएँ हश्र जगाएँ वो इतना दिलकश है
ख्याल हर्फ़ न पाएँ वो इतना दिलकश है,

बहिश्ती गूंचों से गूंधा गया सुराही बदन
गुलाब ख़ुशबू चुराएँ वो इतना दिलकश है,

बना के ख़ुश हुआ इतना कि अब भी लेता है
ख़ुदा ख़ुद अपनी बलाएँ वो इतना दिलकश है,

क़दम इरम में धरे ख़ुश क़दम तो हूर ओ गुलाम
चिराग़ घी के जलाएं वो इतना दिलकश है,

जिन्होंने साया भी देखा वो हूर का घूँघट
मुहाल है कि उठाएँ वो इतना दिलकश है,

ख़ुदा ने इसलिए उसे बहिश्त से भेजा
फ़रिश्ते करते खताएँ वो इतना दिलकश है,

चमन को जाए तो दस लाख नरगिसी गूंचे
ज़मीं पे पलकें बिछाएँ वो इतना दिलकश है,

हसीन परियां हैं हमराह खोले बंद ए क़बा
उसे नज़र से बचाएँ वो इतना दिलकश है,

उदास गूंचों ने जाँ की अमान पा के कहा
लबो से तितली उड़ाएँ वो इतना दिलकश है,

वो पंखुड़ी पे अगर चलते चलते थक जो जाए
तो परियां पैर दबाएँ वो इतना दिलकश है,

ये शोख़ तितलियाँ बारिश में उसको देखें तो
उखाड़ फेके क़बायें वो इतना दिलकश है,

वो चाँद ईद का उतरे जो दिल के आँगन में
हम ईद रोज़ मनाएं वो इतना दिलकश है..!!

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