अब शौक़ से कि जाँ से गुज़र जाना चाहिए
बोल ऐ हवा ए शहर किधर जाना चाहिए ?
कब तक इसी को आख़िरी मंज़िल कहेंगे हम
कू ए मुराद से भी उधर जाना चाहिए,
वो वक़्त आ गया है कि साहिल को छोड़ कर
गहरे समुंदरों में उतर जाना चाहिए,
अब रफ़्तगाँ की बात नहीं कारवाँ की है
जिस सम्त भी हो गर्द ए सफ़र जाना चाहिए,
कुछ तो सुबूत ए ख़ून ए तमन्ना कहीं मिले
है दिल तही तो आँख को भर जाना चाहिए,
या अपनी ख़्वाहिशों को मुक़द्दस न जानते
या ख़्वाहिशों के साथ ही मर जाना चाहिए..!!
~अहमद फ़राज़