आसमान से इनायतें न तुझे मिलीं न मुझे मिलीं
मुहब्बतों से राहतें न तुझे मिलीं न मुझे मिलीं,
हमें आशिक़ी में सच मिला हमें ज़िन्दगी में सब मिला
मगर बेवफ़ाई की आदतें न तुझे मिलीं न मुझे मिलीं,
इधर तू दुआ में लगा रहा उधर मैं दुआ में लगा रहा
पर मन्नतों से हाजतें न तुझे मिलीं न मुझे मिलीं,
थी आरज़ू कभी साहिलों पे तेरे साथ साथ हम चल सकें
पर समंदरों से इजाज़तें न तुझे मिलीं न मुझे मिलीं,
जिस ज़िन्दगी की ख्वाहिशों में सौ रतजगो में सजूद किये
उस ज़िन्दगी की बशारतें न तुझे मिलीं न मुझे मिलीं,
हसरतों के दीयों को आग कभी तू ने दी कभी मैं ने दी
मगर रौशनी की अलामतें न तुझे मिलीं न मुझे मिलीं,
न तो तेरे दर्द रुके कहीं न मेरे ज़ख्म भरे कभी
सब्र ओ शुक्र की हालतें न तुझे मिलीं न मुझे मिलीं,
तेरी मंज़िलें कहीं और थी मेरी मंज़िलें कहीं और थी
किसी एक सिम्त की मुसाफ़तें न तुझे मिलीं न मुझे मिलीं,
तू ठहर गया किसी और के घर मैं रुक गया किसी और के दर
मन पसंद सी चाहतें न तुझे मिलीं न मुझे मिलीं,
हमारी पुरखुलुस नीयतों से मंज़िलें क्यूँ छीन गई ?
मुक़द्दरों से वज़ाहतें न तुझे मिलीं न मुझे मिलीं..!!