आँखों से मिरी इस लिए लाली नहीं जाती
यादों से कोई रात जो ख़ाली नहीं जाती,
अब उम्र न मौसम न वो रस्ते कि वो पलटे
इस दिल की मगर ख़ाम-ख़याली नहीं जाती,
माँगे तो अगर जान भी हँस के तुझे दे दें
तेरी तो कोई बात भी टाली नहीं जाती,
आए कोई आ कर ये तिरे दर्द सँभाले
हम से तो ये जागीर सँभाली नहीं जाती,
मा’लूम हमें भी हैं बहुत से तिरे क़िस्से
पर बात तिरी हम से उछाली नहीं जाती,
हमराह तिरे फूल खिलाती थी जो दिल में
अब शाम वही दर्द से ख़ाली नहीं जाती,
हम जान से जाएँगे तभी बात बनेगी
तुम से तो कोई राह निकाली नहीं जाती..!!
~वसी शाह