आहट पे कान दर पे नज़र इस तरह न थी

आहट पे कान दर पे नज़र इस तरह न थी
एक एक पल की हम को ख़बर इस तरह न थी,

था दिल में दर्द पहले भी लेकिन न इस क़दर
वीराँ तो थी हयात मगर इस तरह न थी,

हर एक मोड़ मक़्तल ए अरमान ओ आरज़ू
पहले तो तेरी राहगुज़र इस तरह न थी,

जब तक सबा ने छेड़ा न था निकहत ए गुलाब
कूचा ब कूचा महव ए सफ़र इस तरह न थी,

बरसों में पहले होती थी नम आस्तीं कभी
अर्ज़ां मता ए दीदा ए तर इस तरह न थी..!!

~बशर नवाज़

संबंधित अश'आर | गज़लें

Leave a Reply