वो मेरे घर नहीं आता मैं उसके घर नहीं जाता

वो मेरे घर नहीं आता मैं उसके घर नहीं जाता
मगर इन एहतियातों से ताअल्लुक़ मर नहीं जाता,

बुरे अच्छे हो जैसे भी हों सब रिश्ते यहीं के हैं
किसी को साथ दुनियाँ से कोई ले कर नहीं जाता,

घरों की तरबीयत क्या आ गई टीवी के हाथों में
कोई बच्चा अब अपने बाप के ऊपर नहीं जाता,

खुले थे शहर में सौ दर मगर एक हद के अन्दर ही
कहाँ जाता अगर मैं लौट के फिर घर नहीं जाता,

मुहब्बत के ये आँसूं है इन्हें आँखों में रहने दो
शरीफों के घरों का मसअला बाहर नहीं जाता,

वसीम उस से कहो दुनियाँ बहुत महदूद है मेरी
किसी दर का जो हो जाए वो फिर दर दर नहीं जाता..!!

~वसीम बरेलवी

Leave a Reply

Eid Special Dresses for women