कितना नादान है वो मेरे दिल ए हाल से

कितना नादान है वो मेरे दिल ए हाल से
ख़ुद का दिल दुखाता है ख़ुद के सवाल से,

दीवारों पे ना जाने कहाँ से आ गया रंग ये
दरारे थी पड़ी इस पे पहले मेरे ख़्याल से,

हम ख़ुद को खाक़ में मिला कर चल दिए
ख़ुशबू गैर की जो आई उसके रुमाल से,

अपने सिवा कभी सोच हमारे बारे में भी
हर बार ही क़त्ल होते है हम तेरे जमाल से,

दर पर तेरी आ रुकी भटक कर हवाएँ भी
सनम तेरी ही भीगी ज़ुल्फों के कमाल से,

क्या क्या ना तुझको मिला ऐ दिल ए नादां
मुहब्बत दर्द ओ गम उसका इस साल से…!!

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