अजब वायज़ की दींदारी है या रब !

अजब वायज़ की दींदारी है या रब !
अदावत है इसे सारे जहाँ से,

कोईअब तक न यह समझा, कि इंसा
कहाँ जाता है ? आता है कहाँ  से ?

वहीं से रात को ज़ुलमत मिली है
चमक तारे ने पायी है जहाँ से,

हम अपनी दरदमन्दी का फ़साना
सुना करते हैं अपने राज़दां से,

बड़ी बारीक हैं वायज़ की चालें
लरज़ जाता है आवाज़े अज़ां से..!!

~अल्लामा इक़बाल

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