दरोग़ के इम्तिहाँ कदे में सदा यही…

दरोग़ के इम्तिहाँ कदे में सदा यही कारोबार होगा
जो बढ़ के ताईद ए हक़ करेगा वही सज़ावार ए दार होगा,

बिला ग़रज़ सादा सादा बातों से डाल दें रस्म दोस्ती की
जो सिलसिला इस तरह चलेगा वो लाज़िमन पाएदार होगा,

चलो मोहब्बत की बेख़ुदी के हसीन ख़ल्वत कदे में बैठें
अजीब मसरूफ़ियत रहेगी न ग़ैर होगा न यार होगा,

तेरे गुलिस्ताँ की आबरू है महक तेरी इन्फ़िरादियत की
तू कस्मपुर्सी से बुझ भी जाए तो ग़ैरत ए नौ बहार होगा,

जहाँ न तू हो न कोई हमदर्द हो न कोई शरीफ़ दुश्मन
मैं सोचता हूँ मुझे वो माहौल किस तरह साज़गार होगा,

बहिश्त में भी जनाब ए ज़ाहिद तुम्हें न तरजीह मिल सकेगी
वहाँ भी ख़ुश ज़ौक़ आसियों का तपाक से इंतज़ार होगा,

‘अदम’ की शब ख़ेज़ियों के अहवाल यूँ सुनाते हैं उस के महरम
कि सुनने वाले ये मान जाएँ कोई तहज्जुद गुज़ार होगा..!!

~अब्दुल हमीद अदम

Leave a Reply

Eid Special Dresses for women