किस तरफ़ क़ाफ़िला जाना है कहाँ देखते हैं
हम तो बस आप के पैरों के निशाँ देखते हैं,
ऐसा माहौल बना रक्खा है दरवाज़े पर
आते जाते हुए सब मेरा मकाँ देखते हैं,
जंग बीनाई को किस मोड़ पे ले आई है
आसमाँ देखना चाहें तो धुआँ देखते हैं,
लोग कहते हैं तू मौजूद नहीं दुनिया में
हम को फिर भी नज़र आता है जहाँ देखते हैं,
पैरहन देख रहे हैं ये सभी लोग मेरा
तुम तो कहते थे कि अंदाज़ ए बयाँ देखते हैं..!!
~इब्राहीम अली ज़ीशान
दिल इतना खो गया आराइशों में
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