उन लबों की याद आई गुल के मुस्कुराने से
ज़ख़्म ए दिल उभर आए फिर बहार आने से,
जाने थी गुरेज़ उन को या कि शर्म महफ़िल में
रात मुझ से कतराए वो नज़र मिलाने से,
राज़ जो छुपाए थे आज सब पे ज़ाहिर हैं
कुछ मेरी कहानी से कुछ तेरे फ़साने से,
हाल जो हमारा है सब तो उन पे रौशन है
फिर बताऊँ क्या होगा हाल ए दिल सुनाने से,
उन को हम से क्या मतलब हम को क्या ग़रज़
तर्क ए इश्क़ कर बैठे हम तो एक ज़माने से..!!
~अज्ञात
नेकियों के ज़ुमरे में भी ये काम कर जाओ
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