किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी

किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी,

हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है
नई नई सी है कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी,

कहूँ ये कैसे इधर देख या न देख उधर
कि दर्द दर्द है फिर भी नज़र नज़र फिर भी,

ख़ुशा इशारा ए पैहम ज़हे सुकूत ए नज़र
दराज़ हो के फ़साना है मुख़्तसर फिर भी,

झपक रही हैं ज़मान ओ मकाँ की भी आँखें
मगर है क़ाफ़िला आमादा ए सफ़र फिर भी,

शब ए फ़िराक़ से आगे है आज मेरी नज़र
कि कट ही जाएगी ये शाम ए बे सहर फिर भी,

कहीं यही तो नहीं काशिफ़ ए हयात ओ ममात
ये हुस्न ओ इश्क़ ब ज़ाहिर हैं बे ख़बर फिर भी,

पलट रहे हैं ग़रीब उल वतन पलटना था
वो कूचा रू कश ए जन्नत हो घर है घर फिर भी,

लुटा हुआ चमन ए इश्क़ है निगाहों को
दिखा गया वही क्या क्या गुल ओ समर फिर भी,

ख़राब हो के भी सोचा किए तेरे महजूर
यही कि तेरी नज़र है तेरी नज़र फिर भी,

हो बे नियाज़ ए असर भी कभी तेरी मिट्टी
वो कीमिया ही सही रह गई कसर फिर भी,

लिपट गया तेरा दीवाना गरचे मंज़िल से
उड़ी उड़ी सी है ये ख़ाक ए रहगुज़र फिर भी,

तेरी निगाह से बचने में उम्र गुज़री है
उतर गया रग ए जाँ में ये नेश्तर फिर भी,

ग़म ए फ़िराक़ के कुश्तों का हश्र क्या होगा
ये शाम ए हिज्र तो हो जाएगी सहर फिर भी,

फ़ना भी हो के गिराँ-बारी ए हयात न पूछ
उठाए उठ नहीं सकता ये दर्द ए सर फिर भी,

सितम के रंग हैं हर इल्तिफ़ात ए पिन्हाँ में
करम नुमा हैं तेरे जौर सर ब सर फिर भी,

ख़ता मुआफ़ तेरा अफ़्व भी है मिस्ल ए सज़ा
तेरी सज़ा में है एक शान ए दर-गुज़र फिर भी,

अगरचे बे ख़ुदी ए इश्क़ को ज़माना हुआ
फ़िराक़ करती रही काम वो नज़र फिर भी..!!

~फ़िराक़ गोरखपुरी

इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं

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