देखे हुए किसी को बहुत दिन गुज़र गए
इस दिल की बेबसी को बहुत दिन गुज़र गए,
हर शब छतों पे चाँद उतरता तो है मगर
इस घर में चाँदनी को बहुत दिन गुज़र गए,
कोई जवाज़ ढूँड ग़म ए ना शनास का
बे वज्ह बेकली को बहुत दिन गुज़र गए,
अब तक अकेलेपन का मुसलसल अज़ाब है
दुनिया से दोस्ती को बहुत दिन गुज़र गए,
तेरी रिफाक़तें तो मुक़द्दर में ही न थीं
अब अपनी ही कमी को बहुत दिन गुज़र गए,
मुद्दत हुई है टूट के रोया नहीं हूँ मैं
इस चैन की घड़ी को बहुत दिन गुज़र गए,
वो जागती हवेली भी वीरान हो गई
उस नुक़रई हँसी को बहुत दिन गुज़र गए,
वो क़हक़हे भी वक़्त के सहरा में खो गए
गलियों की ख़ामुशी को बहुत दिन गुज़र गए,
मुद्दत हुई कि रात का वो जागना गया
इस रंज ए आशिक़ी को बहुत दिन गुज़र गए,
जो एतिबार ए ज़ख़्म हुनर ने अता किया
दानिश वो शायरी को बहुत दिन गुज़र गए..!!
~नून मीम दनिश
























