कैसे कहें कि याद ए यार रात जा चुकी बहुत
रात भी अपने साथ साथ आँसू बहा चुकी बहुत,
चाँद भी है थका थका तारे भी हैं बुझे बुझे
तेरे मिलन की आस फिर दीप जला चुकी बहुत,
आने लगी है ये सदा दूर नहीं है शहर ए गुल
दुनिया हमारी राह में काँटे बिछा चुकी बहुत,
खुलने को है क़फ़स का दर पाने को है सुकूँ नज़र
ऐ दिल ए ज़ार शाम ए ग़म हम को रुला चुकी बहुत,
अपनी क़ियादतों में अब ढूंढेंगे लोग मंज़िलें
राहज़नों की रहबरी राह दिखा चुकी बहुत..!!
~हबीब जालिब

























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