ये ग़म क्या दिल की आदत है नहीं तो
किसी से कुछ शिकायत है नहीं तो,
किसी के बिन किसी की याद के बिन
जिए जाने की हिम्मत है नहीं तो,
है वो एक ख़्वाब ए बेताबीर उस को
भुला देने की नीयत है नहीं तो,
किसी सूरत भी दिल लगता नहीं हाँ
तो कुछ दिन से ये हालत है नहीं तो,
तेरे इस हाल पर है सब को हैरत
तुझे भी इस पे हैरत है नहीं तो,
हम आहंगी नहीं दुनिया से तेरी
तुझे इस पर नदामत है नहीं तो,
हुआ जो कुछ यही मक़्सूम था क्या
यही सारी हिकायत है नहीं तो,
अज़िय्यत नाक उम्मीदों से तुझ को
अमाँ पाने की हसरत है नहीं तो,
तू रहता है ख़याल ओ ख़्वाब में गुम
तो इस की वज्ह फ़ुर्सत है नहीं तो,
सबब जो इस जुदाई का बना है
वो मुझ से ख़ूबसूरत है नहीं तो..!!
~जौन एलिया























1 thought on “ये ग़म क्या दिल की आदत है नहीं तो”