मायूस ए शाम ए ग़म तुझे इस की ख़बर भी है
तारीकियों की आड़ में नूर ए सहर भी है,
मुमकिन नहीं है दीदा ओ दानिस्ता तर्क ए इश्क़
मजबूर सिर्फ़ दिल ही नहीं है नज़र भी है,
ये मुनहसिर है आप पे जैसे भी देखिए
ना मो’तबर भी है वो नज़र मो’तबर भी है,
तू ही बता दे मुझ को कि सज्दे कहाँ करूँ
माबैन ए दैर ओ का’बा तेरा संग ए दर भी है,
तेरे जुनून ए शौक़ ने क्या गुल खिलाए हैं
बेगाना ए बहार थे कुछ गुल ख़बर भी है,
सब रह रव ए हयात हैं लेकिन नए नए
मंज़िल वही है और वही रहगुज़र भी है,
उस के करम का शुक्र कहाँ तक अदा हो शौक़
सोज़िश भी है ख़लिश भी है दर्द ए जिगर भी है..!!
~विशनू कुमार शौक