क्यों वो मेरा मरकज़ ए अफ़्कार था ?
जिस के होने से मुझे इंकार था,
यूँ तो मुश्किल थी बहुत तेरी तलाश
ख़ुद को अपना और भी दुश्वार था,
उस के हिस्से में दर ओ दीवार थे
मेरा हिस्सा साया ए दीवार था,
रफ़्ता रफ़्ता सब के जैसा हो गया
पहले मैं भी साहब ए किरदार था,
दूरियों ने क़ुर्बतें बख़्शीं हमें
मिलना जुलना बाइस ए तकरार था,
कैसे बढ़ता क़ाफ़िला आगे फ़रोग़
हर कोई जब क़ाफ़िला सालार था..!!
~फ़रोग़ ज़ैदी