या रब मेरी हयात से ग़म का असर न जाए

या रब मेरी हयात से ग़म का असर न जाए
जब तक किसी की ज़ुल्फ़ ए परेशाँ सँवर न जाए,

वो आँख क्या जो आरिज़ ओ रुख़ पर ठहर न जाए
वो जल्वा क्या जो दीदा ओ दिल में उतर न जाए,

मेरे जुनूँ को ज़ुल्फ़ के साए से दूर रख
रस्ते में छाँव पा के मुसाफ़िर ठहर न जाए,

मैं आज गुलसिताँ में बुला लूँ बहार को
लेकिन ये चाहता हूँ ख़िज़ाँ रूठ कर न जाए,

पैदा हुए हैं अब तो मसीहा नए नए
बीमार अपनी मौत से पहले ही मर न जाए,

कर ली है तौबा इस लिए वाइज़ के सामने
इल्ज़ाम ए तिश्नगी मेरे साक़ी के सर न जाए,

साक़ी पिला शराब मगर ये रहे ख़याल
आलाम ए रोज़गार का चेहरा उतर न जाए,

मैं उस के सामने से गुज़रता हूँ इस लिए
तर्क ए तअल्लुक़ात का एहसास मर न जाए,

मसरूर ए दीद ए हुस्न है इस वास्ते फ़ना
दुनिया के ऐब पर कभी मेरी नज़र न जाए..!!

~फ़ना निज़ामी कानपुरी

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