ऐसा बनना सँवरना मुबारक तुम्हें कम से कम इतना कहना हमारा करो
चाँद शरमाएगा चाँदनी रात में यूँ न ज़ुल्फ़ों को अपनी सँवारा करो,
ये तबस्सुम ये आरिज़ ये रौशन जबीं ये अदा ये निगाहें ये ज़ुल्फ़ें हसीं
आइने की नज़र लग न जाए कहीं जान ए जाँ अपना सदक़ा उतारा करो,
दिल तो क्या चीज़ है जान से जाएँगे मौत आने से पहले ही मर जाएँगे
ये अदा देखने वाले लुट जाएँगे यूँ न हँस हँस के दिलबर इशारा करो,
फ़िक्र ए उक़्बा की मस्ती उतर जाएगी तौबा टूटी तो क़िस्मत सँवर जाएगी
तुम को दुनिया में जन्नत नज़र आएगी शैख़ जी मयकदे का नज़ारा करो,
ख़ूबसूरत घटाओं भरी रात में लुत्फ़ उठाया करो ऐसी बरसात में
जाम ले कर छलकता हुआ हाथ में मयकदे में भी एक शब गुज़ारा करो,
काम आए न मुश्किल में कोई यहाँ मतलबी दोस्त हैं मतलबी यार हैं
इस जहाँ में नहीं कोई अहल ए वफ़ा ऐ फ़ना इस जहाँ से किनारा करो..!!
~फ़ना निज़ामी कानपुरी