ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाएँ हम
दिल ख़ून में नहाए तो गंगा नहाएँ हम,
जन्नत में जाएँ हम कि जहन्नम में जाएँ हम
मिल जाए तो कहीं न कहीं तुझ को पाएँ हम,
जौफ़ ए फ़लक में ख़ाक भी लज़्ज़त नहीं रही
जी चाहता है तेरी जफ़ाएँ उठाएँ हम,
डर है न भूल जाए वो सफ़्फ़ाक रोज़ ए हश्र
दुनिया में लिखते जाते हैं अपनी ख़ताएँ हम,
मुमकिन है ये कि वादे पर अपने वो आ भी जाए
मुश्किल ये है कि आप में उस वक़्त आएँ हम,
नाराज़ हो ख़ुदा तो करें बंदगी से ख़ुश
माशूक़ रूठ जाए तो क्यूँकर मनाएँ हम ?
सर दोस्तों का काट के रखते हैं सामने
ग़ैरों से पूछते हैं क़सम किस की खाएँ हम ?
कितना तेरा मिज़ाज ख़ुशामद पसंद है
कब तक करें ख़ुदा के लिए इल्तिजाएँ हम,
लालच अबस है दिल का तुम्हें वक़्त ए वापसीं
ये माल वो नहीं कि जिसे छोड़ जाएँ हम,
सौंपा तुम्हें ख़ुदा को चले हम तो ना मुराद
कुछ पढ़ के बख़्शना जो कभी याद आएँ हम,
सोज़ ए दरूँ से अपने शरर बन गए हैं अश्क
क्यूँ आह ए सर्द को न पतिंगे लगाएँ हम,
ये जान तुम न लोगे अगर आप जाएगी
उस बेवफ़ा की ख़ैर कहाँ तक मनाएँ हम ?
हमसाए जागते रहे नालों से रात भर
सोए हुए नसीब को क्यूँ कर जगाएँ हम ?
जल्वा दिखा रहा है वो आईना ए जमाल
आती है हम को शर्म कि क्या मुँह दिखाएँ हम ?
मानो कहा जफ़ा न करो तुम वफ़ा के बाद
ऐसा न हो कि फेर लें उल्टी दुआएँ हम,
दुश्मन से मिलते जुलते हैं ख़ातिर से दोस्ती
क्या फ़ाएदा जो दोस्त को दुश्मन बनाएँ हम ?
तू भूलने की चीज़ नहीं ख़ूब याद रख
ऐ दाग़ किस तरह तुझे दिल से भुलाएँ हम..??
~दाग़ देहलवी