ये शहर सेहर ज़दा है सदा किसी की नहीं
यहाँ ख़ुद अपने लिए भी दुआ किसी की नहीं,
ख़िज़ाँ में चाक गरेबाँ था मैं बहार में तू
मगर ये फ़स्ल ए सितम आश्ना किसी की नहीं,
सब अपने अपने फ़साने सुनाते जाते हैं
निगाह ए यार मगर हमनवा किसी की नहीं,
मैं आज ज़द पे अगर हूँ तो ख़ुश गुमान न हो
चराग़ सब के बुझेंगे हवा किसी की नहीं,
फ़राज़ अपनी जिगर कावियों पे नाज़ न कर
कि ये मता ए हुनर भी सदा किसी की नहीं..!!
~अहमद फ़राज़