एक तो नैनाँ कजरारे और तिस पर डूबे काजल में
बिजली की बढ़ जाए चमक कुछ और भी गहरे बादल में,
आज ज़रा ललचाई नज़र से उसको बस क्या देख लिया
पग पग उस के दिल की धड़कन उतरी आए पायल में,
प्यासे प्यासे नैनाँ उस के जाने पगली चाहे क्या
तट पर जब भी जावे सोचे नदिया भर लूँ छागल में,
सुब्ह नहाने जूड़ा खोले नाग बदन से आ लिपटें
उस की रंगत उस की ख़ुश्बू कितनी मिलती संदल में,
गोरी इस संसार में मुझ को ऐसा तेरा रूप लगे
जैसे कोई दीप जला हो घोर अँधेरे जंगल में,
प्यार की यूँ हर बूँद जला दी मैं ने अपने सीने में
जैसे कोई जलती माचिस डाल दे पी कर बोतल में,
आज पता क्या कौन से लम्हे कौन सा तूफ़ाँ जाग उठे
जाने कितनी दर्द की सदियाँ गूँज रही हैं पल पल में..!!
~जाँ निसार अख़्तर