यूँ तो हँसते हुए लड़कों को भी ग़म होता है
कच्ची उम्रों में मगर तजरबा कम होता है,
सिगरटें चाय धुआँ रात गए तक बहसें
और कोई फूल सा आँचल कहीं नम होता है,
इस तरह रोज़ हम एक ख़त उसे लिख देते हैं
कि न काग़ज़ न सियाही न क़लम होता है,
एक एक लफ़्ज़ तुम्हारा तुम्हें मालूम नहीं
वक़्त के खुरदुरे काग़ज़ पे रक़म होता है,
वक़्त हर ज़ुल्म तुम्हारा तुम्हें लौटा देगा
वक़्त के पास कहाँ रहम ओ करम होता है,
फ़ासला इज़्ज़त ओ रुस्वाई में वाली साहब
सुनते आए हैं कि बस चंद क़दम होता है..!!
~वाली आसी