धूप सरों पर और दामन में साया है
सुन तो सही जो पेड़ो ने फ़रमाया है,
कैसे कह दूँ बीच अपने दीवार है
जब छोड़ने कोई दरवाज़े तक आया है,
उससे आगे जाओगे तब ही जान पाओगे
मंज़िल तक तो रास्ता ही तुमको लाया है,
बादल बन कर चाहे कितना ऊँचा हो
पानी आख़िर मिट्टी का ही सरमाया है,
आख़िर ये नाक़ाम मुहब्बत काम आई
तुझको खो कर ही मैंने ख़ुद को पाया है,
मुहब्बत को अपनाना कोई खेल नहीं
अपने ही हाथो से अपना हाथ छुड़ाया है..!!