ज़िन्दगी भर अज़ाब सहने को

ज़िन्दगी भर अज़ाब सहने को
दिल मिला है उदास रहने को,

एक चुप के हज़ारहा मफ़हूम
और क्या रह गया है कहने को ?

चाँद जिसकी जबीं पे झुकता हो
वो तरसती है एक गहने को,

आसमां से उतर पड़ा सूरज
चलते दरिया के साथ बहने को,

घर में तुम भी रहा करो मोहसिन
घर बनाते है लोग रहने को..!!

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