ये मेरा दिल कहाँ है अब तुम्हारी राजधानी है

ये मेरा दिल कहाँ है अब तुम्हारी राजधानी है
मेंरे दिल पर तुम्हारे दर्द ओ ग़म की हुक्मरानी है,

सुनो कुछ तो कहो तुम क्यों भला यूँ रूठ बैठी हो
हमेशा मैंने मेरी जाँ तुम्हारी बात मानी है,

मुझे कोई नहीं समझा किसी ने भी नहीं जाना
सुनो गर वक़्त हो तुम को मेंरे दिल की सुनानी है,

मैं सच को सच ही कहता हूँ ख़ुशामद कर नहीं सकता
अभी की तो नहीं मेरी ये आदत ख़ानदानी है,

तुम्हारे ग़म को रोता है तुम इस पर मुस्कुराते हो
समझते झूठ हो सच को तुम्हारी बद गुमानी है,

लगाना इस से दिल का क्या खिलौना है ये मिट्टी का
ये दुनिया खेल बच्चों का न कुछ आनी न जानी है,

बताने की ज़रूरत क्या समझता हूँ तुम्हारा ग़म
सुनो आँसू तुम्हारे दर्द ओ ग़म की तर्जुमानी है..!!

~इरशाद अज़ीज़

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