यही हाल रहा साक़ी तेरे मयखानों का
तो ढेर लग जाएगा टूटे हुए पैमानों का,
क़हत दुनियाँ में है अब ऐसे मुसलमानों का
ज़ोर जो तोड़ दिया करते थे तूफानों का,
कोई खालिद है न तारीक है, न इब्न ए कासिम
अब रास्ता साफ़ है बढ़ते हुए शैतानो का,
जिस जगह चाहो जहाँ चाहो बहा दो इसको
खून इस दौर में सस्ता है मुसलमानों का,
जिनके होते हुए लूट जाए ग़रीबों के मकाँ
मर्सियाँ आओ पढ़े ऐसे निगहबानो का..!!