वो लोग आएँ जिन्हें हौसला ज़्यादा है
ग़ज़ल में ख़ून का मसरफ़ ज़रा ज़्यादा है,
सब अपने आप को दोहरा रहे हैं रह रह कर
वो इस लिए कि पढ़ा कम लिखा ज़्यादा है,
ये सच है कोई फ़रिश्ता नहीं मेरे अंदर
मगर ख़ता की बनिसबत सज़ा ज़्यादा है,
मेरा ख़ुमार उतर जाए तो ये फ़ैसला हो
तेरी शराब में क्या कम है क्या ज़्यादा है ?
ग़ज़ल उसी पे दर ए इल्तिफ़ात खोलती है
जिसे लिहाज़ रिवायात का ज़्यादा है..!!
~शकील जमाली