वो इंसाँ जो शिकार ए गर्दिश ए अय्याम होता है
भला करता है दुनिया का मगर बदनाम होता है,
जो देखो ग़ौर से हर शे’र एक इल्हाम होता है
सभी अशआ’र से ज़ाहिर कोई पैग़ाम होता है,
दहल जाते हैं दिल कलियों के गुलशन थरथराता है
चमन में जब कोई ताइर असीर ए दाम होता है,
ख़िरद हाइल हुआ करती है जब भी राह ए उल्फ़त में
जुनून ए इश्क़ ए सादिक़ मुफ़्त में बदनाम होता है,
जब आ जाता है ग़ालिब ज़ोर ए बातिल हक़परस्तों पर
निज़ाम ए जब्र से हरसू बपा कोहराम होता है,
ये दुनिया है अजब इसमें भला क्या क्या नहीं होता ?
यहाँ मासूम इंसाँ मोरिद ए इल्ज़ाम होता है,
है मयख़ाना ‘ग़ुबार’ इसमें किसी को हक़ नहीं मिलता
ज़बरदस्ती उठा ले जो उसी का जाम होता है..!!
~ग़ुबार किरतपुरी