वो बात बात में ऐसे निशान छोड़ गया
सुलगते दिल को चिता के समान छोड़ गया,
न जाने कौन सी धुन में था क़ातिलों का हुजूम
तड़पते जिस्मों में थोड़ी सी जान छोड़ गया,
जिसे मैं अपने मसाइल का हल समझता था
वो जब गया तो बहुत इम्तिहान छोड़ गया,
हमारा राज़ तेरी बज़्म तक गया कैसे
है कौन जो पस ए दीवार कान छोड़ गया,
वो आज तक है मुहाजिर के नाम से बदनाम
जो शख़्स तैश में हिन्दोस्तान छोड़ गया,
शिकायतें भी करें हम नवाब तो कैसे
वो लफ़्ज़ छीन के मुँह में ज़बान छोड़ गया..!!
~ख़्वाजा सईदुद्दीन नवाब