उसे भुला के भी यादों के सिलसिले न गए
दिल ए तबाह तेरे उससे राब्ते न गए,
किताब ए ज़ीस्त के उनवाँ बदल गए लेकिन
निसाब ए जाँ से कभी उस के तज़्किरे न गए,
मुझे तो अपनी ही सादा दिली ने लूटा है
कि मेरे दिल से मुरव्वत के हौसले न गए,
मैं चाँद और सितारों के गीत गाता रहा
मेरे ही घर से अँधेरों के क़ाफ़िले न गए,
रईस जुरअत ए इज़हार मेरा विर्सा है
क़सीदे मुझ से किसी शाह के लिखे न गए..!!
~रईस वारसी