उधर की शय इधर कर दी गई है

उधर की शय इधर कर दी गई है
ज़मीं ज़ेर ओ ज़बर कर दी गई है,

ये काली रात है दो-चार पल की
ये कहने में सहर कर दी गई है,

तआरुफ़ को ज़रा फैला दिया है
कहानी मुख़्तसर कर दी गई है,

न पूछो कैसे गुज़री उम्र सारी
ज़रा में उम्र भर कर दी गई है,

इबादत में बसर करनी थी लेकिन
ख़राबों में बसर कर दी गई है,

कई ज़र्रात बाग़ी हो चुके हैं
सितारों को ख़बर कर दी गई है,

वो मेरी हमक़दम होने न पाई
जो मेरी हमसफ़र कर दी गई है,

हमारी जुगनुओं से दुश्मनी थी
ज़रा पहले सहर कर दी गई है..!!

~अहमद हमेश

Leave a Reply

error: Content is protected !!