ठीक है कि ये जहाँ मुद्दत से उर्यानी पे था

ठीक है कि ये जहाँ मुद्दत से उर्यानी पे था
पर किसे यूँ नाज़ कल तक चाक दामानी पे था,

तीरगी ए आब ओ गिल ने ध्यान तोड़ा यकबयक
वर्ना कल शब चाँद अपनी पूरी ताबानी पे था,

डूब कर ऐसे तख़य्युल में खुला वो माहरू
गाहे गाहे एक शिकन उस ख़ंदा पेशानी पे था,

सब ज़ुहूर ए इब्न ए मरियम की दुआ करते रहे
ध्यान उन सब का मगर तख़्त ए सुलैमानी पे था,

हम हुजूम ए दहर में होते हैं ऐसे आजकल
जैसे यूसुफ़ भाइयों में चाह ए कनआनी पे था..!!

~अश्क अलमास

 

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