तेरे और मेरे बारे में जो मशहूर एक कहानी है
वही कहानी अब ज़माने के ज़हन से मिटानी है,
हमारे बारे में जो तुम पूछती फिरती हो गैरो से
ये कोई खैरियत आगाही नहीं ये बदगुमानी है,
किया है राह ए मुहब्बत में खाक़ ख़ुद को मैंने
हमारी तरह भला कब तुमने खाक़ छानी है ?
बला की चमक आई है मेरे शेरो में क्यूँ कि
स्याह शब में भी मैंने चादर गज़ल की तानी है,
एक सवाल नामा है ये ज़िन्दगी अपनी ज़रीन
और उस पे अपनी तबीयत भी इम्तेहानी है,
टूटे दिल के अल्फाज़ ज़रीन तेरी मेहरबानी हैं
वरना क्या शेर गोई पेशा मेरा खानदानी है..??
~नवाब ए हिन्द