तेरा ये लुत्फ़ किसी ज़ख़्म का उन्वान न हो

तेरा ये लुत्फ़ किसी ज़ख़्म का उन्वान न हो
ये जो साहिल सा नज़र आता है तूफ़ान न हो,

क्या बला शहर पे टूटी है ख़ुदा ख़ैर करे
यूँ सर ए शाम कोई दश्त भी वीरान न हो,

रंग ख़ुश्बू से जुदा हो तो बिखर जाता है
देखने वाले मेरे हाल पे हैरान न हो,

बात बनती है तो फिर आप ही बन जाती है
इतनी मायूस मुक़द्दर से मेरी जान न हो,

सीख इस शहर में जीने का सलीक़ा ‘अमजद’
कोई मरता है मरे, आप का नुक़सान न हो..!!

~अमजद इस्लाम अमजद

Leave a Reply