दरख्तों से गिरे सूखे हुए पत्ते भी ये इक़रार करते हैं

darakhton se gire sukhe hue patte

दरख्तों से गिरे सूखे हुए पत्ते भी ये इक़रार करते हैं जिन्हें कल तक मुहब्बत थी वो अब

जताए हक़ न कैसे हम भला इक़रार पे…

जताए हक़ न कैसे

जताए हक़ न कैसे हम भला इक़रार पे उनके हमें फिर भी नाज़ होता है हसीं इंकार पे