उधर की शय इधर कर दी गई है
उधर की शय इधर कर दी गई है ज़मीं ज़ेर ओ ज़बर कर दी गई है, ये काली …
उधर की शय इधर कर दी गई है ज़मीं ज़ेर ओ ज़बर कर दी गई है, ये काली …
तुम साथ चले थे तो मेरे साथ चला दिन तुम राह से बिछड़े थे कि बस डूब गया …
न घर है कोई, न सामान कुछ रहा बाक़ी नहीं है कोई भी दुनिया में सिलसिला बाक़ी, ये …
किस तवक़्क़ो’ पे क्या उठा रखिए ? दिल सलामत नहीं तो क्या रखिए ? लिखिए कुछ और दास्तान …
किस को मालूम है क्या होगा नज़र से पहले होगा कोई भी जहाँ ज़ात ए बशर से पहले …