हम शज़र से नहीं साये से वफ़ा करते है…
हम शज़र से नहीं साये से वफ़ा करते हैयही है वजह कि हम लोग दगा करते है, हम
हम शज़र से नहीं साये से वफ़ा करते हैयही है वजह कि हम लोग दगा करते है, हम
कल यूँ ही तेरा तज़किरा निकलाफिर जो यादो का सिलसिला निकलालोग कब कब के आशना निकलेवक़्त कितना गुरेज़
मेरी हो के भी तुम मेरी नहींगिला तो नहीं पर ये मलाल है, अगरचे मेरे पास तुम नहीं
गर करो जहाँ में किसी से भी दोस्तीतो फिर ताउम्र उसको धोखा मत देना, खिला कर लबो पर
तुझे इस क़दर है शिकायतेंकभी सुन ले मेरी हिकायते, तुझे गर न कोई मलाल होमैं भी एक तुझसे
मिल के तुमको छोड़ दे कोई मज़ाक थोड़ी है हम दोनों जो मिले हैये इत्तेफ़ाक थोड़ी है, मिल
कही दिल लगाने की कोशिश न करना मुहब्बत की झूठी अदाओं पे साहबजवानी लुटाने की कोशिश न करना,
मुसाफ़िर भी सफ़र में इम्तिहाँ देने से डरते हैंमोहब्बत क्या करेंगे वो जो जाँ देने से डरते हैं
मंज़िल पे न पहुँचे उसे रस्ता नहीं कहतेदो चार क़दम चलने को चलना नहीं कहते इक हम हैं
मुझे गुमनाम रहने काकुछ ऐसा शौक है हमदमकिसी बेनाम सहरा मेंभटकती रूह हो जैसे, जहाँ साये तरसते होकिसी