हर एक रूह में एक ग़म छुपा लगे है मुझे
हर एक रूह में एक ग़म छुपा लगे है मुझे ये ज़िन्दगी तो कोई बद्दुआ …
हर एक रूह में एक ग़म छुपा लगे है मुझे ये ज़िन्दगी तो कोई बद्दुआ …
हर वक़्त किसी को मुकम्मल नज़ारा नहीं मिलता उम्मीद जब रखो तो कहीं किनारा नहीं …
हर एक शख़्स परेशान ओ दर बदर सा लगे ये शहर मुझको तो यारो कोई …
रोज़मर्रा वही सब ख़बर देख कर अब तो पत्थर हुआ ये ज़िगर देखिए, सड़के चलने …
ज़िन्दगी का बोझ उठाना पड़ेगा गर ज़िन्दा हो तो दिखाना पड़ेगा, लगने लगे जो मसला …
अश्क जब हम बहाने लगते हैं कितने ही गम ठिकाने लगते हैं आईना ले के …
तमाम उम्र कटी उसकी मेज़बानी में बिछड़ गया था कभी जो भरी जवानी में, हमारे …
मुश्किल चाहे लाख हो लेकिन एक दिन तो हल होती है ज़िन्दा लोगों की दुनिया …
लोग सह लेते थे हँस कर कभी बेज़ारी भी अब तो मश्कूक हुई अपनी मिलन …
आंधियाँ भी चले और दीया भी जले होगा कैसे भला आसमां के तले ? अब …